शर्मा के मैं घबराती हूँ |
दिल ये धडकता है जोरो से इतना,
फिजा से न रु- ब-रु हो पाती हूँ |
पट खोलकर मै खिड़की से झाँकू,
दिखते हो तो मै सहम जाती हूँ|
चाहूँ के तुम रोज़ आया करो,
पर इशारों में तुमको मना करती हूँ|
दिल की ये हालत कोई न समझे,
रोती हूँ खुद ही समझाती हूँ|
सर्दी की रातों में बैठी छत पर,
तेरी यादों से मै लिपट जाती हूँ|
मुझसे ये सौतन हवा रोज़ कहती,
उन्हें चूमकर मै चली आती हूँ|
सुनकर हवा की ये गुस्ताखियाँ,
दर्द ओ जलन से तड़प जाती हूँ|