साँसे ....


मेरी गली में न आया करो,
शर्मा के मैं घबराती हूँ |

दिल ये धडकता है जोरो से इतना,
फिजा से न रु- ब-रु हो पाती हूँ |

पट खोलकर मै खिड़की से झाँकू,
दिखते हो तो मै सहम जाती हूँ|

चाहूँ के तुम रोज़ आया करो,
पर इशारों में तुमको मना करती हूँ|

दिल की ये हालत कोई न समझे,
रोती हूँ खुद ही समझाती हूँ|

सर्दी की रातों में बैठी छत पर,
तेरी यादों से मै लिपट जाती हूँ|

मुझसे ये सौतन हवा रोज़ कहती,
उन्हें चूमकर मै चली आती हूँ|

सुनकर हवा की ये गुस्ताखियाँ,
दर्द ओ जलन से तड़प जाती हूँ|

"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....