अच्छा न लगे |...

सज़ा रहें है महफ़िल नयी खुशिओं से पर,
तेरे बगैर समा जलना अब अच्छा न लगे |
                                                                                                
ये घूघंट का गिराना भरी तो पड़ा है ,
तेरे बगैर उठाना अब अच्छा न लगे |

इस महफ़िल पे नज़र मेरी पड़ जाए न कहीं;
तेरे बगैर ये जमाना अब अच्छा न लगे|

साज़ पे है ग़ज़ल वो धुन भी साथ है,
तेरे बगैर ये तराना अब अच्छा न लगे|

इंतजार में तेरे यहाँ मै बेचैन पड़ी,
तेरे बगैर ये शहर अब अच्छा न लगे |

आ जा सनम हम तेरे दीदार को तरसें,
तेरे बगैर कुछ और अब अच्छा न लगे|
                 

"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....