अच्छा न लगे |...

सज़ा रहें है महफ़िल नयी खुशिओं से पर,
तेरे बगैर समा जलना अब अच्छा न लगे |
                                                                                                
ये घूघंट का गिराना भरी तो पड़ा है ,
तेरे बगैर उठाना अब अच्छा न लगे |

इस महफ़िल पे नज़र मेरी पड़ जाए न कहीं;
तेरे बगैर ये जमाना अब अच्छा न लगे|

साज़ पे है ग़ज़ल वो धुन भी साथ है,
तेरे बगैर ये तराना अब अच्छा न लगे|

इंतजार में तेरे यहाँ मै बेचैन पड़ी,
तेरे बगैर ये शहर अब अच्छा न लगे |

आ जा सनम हम तेरे दीदार को तरसें,
तेरे बगैर कुछ और अब अच्छा न लगे|
                 

मै नहीं हूँ...|

मै नहीं हूँ मेरी यादों से लिपट करके रोए हो 
     मेरी तस्वीर के आगे बैठ करके रोए हो |
गैर कहते ही रहे मुझको हर पल तुम तो 
     मै नहीं हूँ मेरे साये को देख करके रोए हो |

तेरी खुशिओं में सजी है महफ़िल फिर तो 
    जशन- ए-रात की तन्हाई में सिमट करके रोए हो |

 मेरे दिल को जला कर हुई तसल्ली तुमको
      अश्क आँखों में समेटे जी भरके रोए हो |

मै थी जिंदा थी तेरी पर तू नहीं मेरा 
मेरी तस्वीर को सीने से लगा करके रोए हो |

मेरे दिल में खुदे थे नक्श तेरे 
    अपनी नफरत को बहुत देर बता करके रोए हो |
जब तलक थे हम हजारों गिले थे तुम्हे 
    अब नही हूँ इश्क बलिस्तों से नाप करके रोए हो |
"निमिशा" लिखती ही रही खुद की ग़ज़ल तुम पर 
         नहीं है वो ये अफसाने दुहरा करके रोए हो |

मुआसात...|

बंद करके आँखों से जो देखा  तो  एक ख्वाब था |
खोल कर जो रुख किया तो सामने शराब था |
मय के खुशबू फर्श से दिल के दीवारों तक थी
हाय ! ये मदिरा नही इश्क का शबाब था |


शाम थी जो ढली तो निशा आ गई,
तारीकिओं में डूबकर इश्क पाना तेजाब था |


ज़िक्र करते है दीवाने राहगीर का यहाँ ,
जो लुट गया आकर शहर में कहीं का नबाब था |

आबे - हैवां की बरसात थी इश्किया रात में,
ईख्राज़त ख्याल में दिल रमां जनाब था |

शब्बे - वस्ल को महबूब से मुआसात कुछ यूँ हुई,
इख्तिलात गैर से दीवाना बना कबाब था|  

मुख़्तसर ही सही इबादत थी उसकी मोहब्बत,
खामोश था हर बात पर पैमाना ही हर जबाब था|




अच्छा है...


यूँ समंदर में अकेले डूब जाना अच्छा है
यूँ आसमा में दूर तन्हा उड़ जाना अच्छा है
कोई छोड़ दे रस्ते में साथ अपना तो
ज़िन्दगी ये तन्हा  और तन्हा जी जाना अच्छा है...|


यूँ  शिशिर की रात  में ठिठुर जाना अच्छा है
यूँ पवन के झोकों में बह जाना अच्छा है
कोई ग़म दे दस्तक अगर दिल पे बार- बार 
तो ऐसी याद से दूर और दूर हो जाना अच्छा है

उनके ख़्वाबों में खुद से अन्जान हो जाना अच्छा है,
अपनी ही धडकनें सुन हैरान हो जाना अच्छा है,
  यकलख्त मिल जाए यहाँ गर भीड़ में सनम
   भीड़ में गुमनाम और गुमनाम हो जाना अच्छा है   
  
तारीकियों  की गोद में सो जाना अच्छा है,
   बगैर उनके इश्क के साँसें थम जाना अच्छा है,
   ग़लतफ़हमी की आग में कभी जलने से पहले,
        "शिप्रा" का अपनी ही लहरों में फ़ना और फ़ना हो जाना अच्छा है|
 

अफ़सोस...

किसी गैर को अपना कह रहे थे हम 
 उसी गैर की खातिर जी रहे थे हम
आज एक झटके में टूटी है नींद अपनी 
कि अब तो लगती ही नही आँखें यारों...|


अब न रहा किसी पे ऐतबार अपना
न करेंगे यकीं न प्यार इतना 
 और दर्द  सहने की हिम्मत नहीं अपनी
कि खुदा से भी न रहा कोई गिला यारों...|

कभी एक प्यारा सा घरोंदा था बनाया 
आज वो एक पल में  यूँ ही ढह गया 
किसी से इतनी दिल्लगी हो गई 
कि दिल के टुकड़ों पे यकीं न रहा यारों...|

न कहेंगे किसी को अब अपना
न बुन सकेंगे कोई और सपना 
जो हो गया वो थी अपनी किस्मत 
अफ़सोस...
हम  बदल न सके  हाथों की लकीरें यारों ...|



कल और आज ...

चल रहे है आज भी हम यहाँ 
राह भी वही रहगुजर है वही
 बस किस्मत ही बदल गयी चलते हुए 
इसमें नहीं दोष रहा इन क़दमों का |



हम चले थे आज भी उसी साहिल से 
नही है तो बस साथ  लहरों  का
ये  तूफाँ  ही बहा ले गया दूर उसको   
 इसमें  नही दोष रहा इन  बूंदों  का |


मंजिलें थी तो आज भी  वहीँ
और टिका साहिल भी  वहीं था 
कुछ साथ न था तो वो गुजरा कल 
इसमें नहीं दोष  रहा इन  लहरों  का |



यहाँ के नज़ारे आज भी उतने हसीं हैं 
की हर दिल यहाँ फिर से  जवाँ हो जाते हैं
ओझल हो गई तो बस अपनी खिलखिलाहट 
 इसमें नहीं दोष  रहा इन  नज़रों का | 

  
 

बचपन की याद....


है सावन की बरसात याद
है बचपन की हर बात याद 
जब काले बादल होते थे 
घनघोर घटा भी बरसी थी 
उस बारिश में हम भीगे थे
उन बूंदों को भी पकडे थे
फिर कागज़ की नाव बनाकर 
बारिश में दूर बहाते थे
उस नाव के पीछे-पीछे
कुछ दूर निकल भी जाते थे
जब कीचड़ में थे पैर पड़े 
गिरते-थमते गिर जाते थे
है  सावन की बरसात याद
है बचपन की  हर बात याद

तब के दिन थे कितने अच्छे 
 सारे अपने थे कितने सच्चे 
 अब तो दुनिया भी झूटी है
  हर एक को फरेब ने लूटी है
  जब बड़े हुए तो पता चला 
  थे दुनिया से अनजान भला 
   बचपन में न चिंता थी
   अपनी न कोई निंदा थी 
  वो रात सुहानी होती थी 
  माँ की लोरी सुनती थी
  फिर नींद की रानी  आती थी 
 सपनो का महल सजाती थी 
  न ऐसी रात कभी आई 
  न नींद की रानी फिर आई
 वो  सपने अपने टूट गए   
वो सच्चे सारे छूट गए 
 बारिश वो सहसा थम गयी
बस बचा  रहा तो वही डगर 
बस बचा  रहा तो वही शहर 
वो ख़ुशी कही अब रही नही 
बस बची रही तो याद वही 
बस बची रही तो याद वही....

है बारिश  की वो बात याद
है बचपन की हर बात याद...

हो न सके|


गमी दिल में यूँ छाई कि हम सो न सके 
                                    अश्क आँखों में है मगर हम सो न सके|



नक्श आँखों में है मगर हम रो न सके
                                         वो थे इन सांसो में मगर कभी मिल न सके| 


अजब दास्ताँ है सुन ले ये खुदा तू भी
                                     हम थे उनके मगर वो मेरे कभी हो न सके|                                             

वो मिलने आ गए है|

गुस्ताखी है गर देखते है बंद करके आँखे उन्हें,
खोला तो फिर क्यों नज़र आ गए है|




                                                       हम थे रखे उन्हें अपने खयालो में
                                                           देखते ही उनकी जुबान पे हम क्यों आ गए है| 
       हम नही सोचते थे के हो रु-ब-रु इस कदर
       सारी कायनात थी खड़ी वो मिलने आ गए है|

जलन

ढूद्ती रहती है नज़रें हर घडी उनको ,
सहर से शाम तलक याद करें हम उनको | 
वो काश मेरे होते तो गम कैसा,
न मिले तो दिल पर क्या बीतेगी क्या पता उनको 


                                   सांझ की दहलीज पर  दिखा  रौशनी सा है,
                                    जाने दिल है जला या जला है दिया |
                                    जलन की आग सुलग रही है ऐसे,
                                          कितने सपने जला गई क्या पता उनको|

                                                


"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....