बंद करके आँखों से जो देखा तो एक ख्वाब था |
खोल कर जो रुख किया तो सामने शराब था |
मय के खुशबू फर्श से दिल के दीवारों तक थी
हाय ! ये मदिरा नही इश्क का शबाब था |
शाम थी जो ढली तो निशा आ गई,
तारीकिओं में डूबकर इश्क पाना तेजाब था |
ज़िक्र करते है दीवाने राहगीर का यहाँ ,
जो लुट गया आकर शहर में कहीं का नबाब था |
आबे - हैवां की बरसात थी इश्किया रात में,
ईख्राज़त ख्याल में दिल रमां जनाब था |
शब्बे - वस्ल को महबूब से मुआसात कुछ यूँ हुई,
इख्तिलात गैर से दीवाना बना कबाब था|
मुख़्तसर ही सही इबादत थी उसकी मोहब्बत,
खामोश था हर बात पर पैमाना ही हर जबाब था|
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