मुआसात...|

बंद करके आँखों से जो देखा  तो  एक ख्वाब था |
खोल कर जो रुख किया तो सामने शराब था |
मय के खुशबू फर्श से दिल के दीवारों तक थी
हाय ! ये मदिरा नही इश्क का शबाब था |


शाम थी जो ढली तो निशा आ गई,
तारीकिओं में डूबकर इश्क पाना तेजाब था |


ज़िक्र करते है दीवाने राहगीर का यहाँ ,
जो लुट गया आकर शहर में कहीं का नबाब था |

आबे - हैवां की बरसात थी इश्किया रात में,
ईख्राज़त ख्याल में दिल रमां जनाब था |

शब्बे - वस्ल को महबूब से मुआसात कुछ यूँ हुई,
इख्तिलात गैर से दीवाना बना कबाब था|  

मुख़्तसर ही सही इबादत थी उसकी मोहब्बत,
खामोश था हर बात पर पैमाना ही हर जबाब था|




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"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....