हरफ़ ...







बीते लम्हों के हरफ़ को तूने देखा है कहीं,
                     तेरे होठों की हँसी को तूने देखा है कहीं|
लापता है दोनों साथो साथ यहाँ से,
                     दिल-ए-बहार की खुशी को तूने देखा है कहीं |
  शिप्रा पूछती है ऐ रहगुज़र तुझसे,
                     तेरे जज़्बात को मरते तूने देखा है कहीं |
                    

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"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....