हरफ़ ...







बीते लम्हों के हरफ़ को तूने देखा है कहीं,
                     तेरे होठों की हँसी को तूने देखा है कहीं|
लापता है दोनों साथो साथ यहाँ से,
                     दिल-ए-बहार की खुशी को तूने देखा है कहीं |
  शिप्रा पूछती है ऐ रहगुज़र तुझसे,
                     तेरे जज़्बात को मरते तूने देखा है कहीं |
                    

काश! आए होते...|




कभी माहौल गमज़दा था,
            और खुशनसीब हम थे|
खुशियों की आज रौनक, 
               और आँख में नमीं है, 
मौसम भी खूब रंग में,
               डूबे हुए थे गम में,
महफिल, गए थे रुकने,
               पर रो के आए हम थे|
गुल से गुलाबी आँखें,
             नरमी भी गाल पर थी,
पर होंठ की हंसी तो,
           सिसकी के साये में थी,
पर काश! आए होते,
           अरमा सजाए हम थे |
ख्वाबों के खौफ खाता,
            हर रात मैं डरा सा,
करता दुआएं उससे,
           जो साथ मे खड़ा था,
कहता, न टूटे सपना,
           वो साथ लाये जो थे|
इकटक तके है रस्ता,
           विश्वास भी था हँसता,
कहता था छोड़ आशा,
             तेरे भाग्य में निराशा,
पर कोसता मैं किसको 
              जब बदनसीब खुद थे|
पर प्रेम था जो मन से,
               मैंने कहा सनम से
सब कुछ निसार तुझ पर,
               करो एतबार मुझ पर 
अब हो गया हूँ बेबस
              और क्या बधाऊँ ढाढंस,
सोच कर ही जी लो 
            जिस रोज़ हम मिले थे|
 सोच कर ही जी लो 
            जिस रोज़ हम मिले थे|

          
                        द्वारा - रवीश कुमार पाण्डेय 

"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....