किस्मत ने वक़्त का रुख बदल दिया,
इन लकीरों ने हर किसी का जीवन बदल दिया ।
कोई खुश है किसी को आघात हुआ ऐसा,
कि नब्ज़ -ए -दिल ने धड़कने का मकसद बदल दिया ।

वो वक़्त मिलन के...।

ज़माने  बाद आज खुशियाँ दर पे आई,
चंद लम्हों की  मुलाकात संग लाई  

पहनकर सफ़ेद  परियों सा चोला,
आईने के सामने अपनी लटो को खोला।

मिलन की बात पर हम निखर आए थे,
 अचानक आईने में वो नज़र आए थे ।

कहे की ओढ़ लो कोई काली सी ओढ़नी ,
बन जाओ आज तुम मेरी रागिनी।

धड़कने तेज़ मध्यम सी होने लगी,
जब उनकी हथेली हमे छूने लगी ।

आ गए वो हमारे इतने पास,
जितना की धड़कन और होती है सांस।

आहिस्ता-आहिस्ता खुद में जकड़ लिए,
उनकी बाँहों में हम हद तक सिकुड़ गए ।

सहसा कोई आवाज़ कानों में पड़ी,
कोई पुकारा नहीं टिकटिकाई थी घड़ी।

यहीं पे वक़्त मिलन के ख़तम होंना था,
थे करीब इतने अब दूर होना था ।

फिर  उन्ही सख्त राहों पे थे अकेले,
जहाँ पर मुस्कुराकर थे मिले।

वो पल बड़ा भारी सा गुजरा ,
हमारा साया साथ उनका छोड़कर उतरा।

अब हमारी राहें थीं जुदा-जुदा,
कसक उनको भी बहुत थी बाखुदा।

लगा हर ओर धुआं सा है,
कोई एहसास दिल में दबा सा है।

जिंदगी रुकने को थी,
साँसे थमने को थी।

उस पल मेरे दिल में बहुत था दर्द,
हवा ठंडी और मौसम था सर्द ।

खड़े थे स्तब्ध एकटक देखते,
काश ! हम उनको एक बार रोकते।

अपने एहसास को हमने लब्जों से सजा दिया,
हमने गम-ए-दुल्हन को सबसे मिला दिया।

गम ....|


एक रमक भर ख़ुशी भी कम है,
                घर में उजियारा लेन को ।
चुटकी भर गम भी जादा है
                 सारा शहर जलने को ।

लाई थी मै प्यार का खिलौना,
                    उसको भी तुमने तोड़ दिया,
 तुम ही बताओ अब क्या लाऊ,
                               पागल दिल बहलाने को।
मिटना चाहे तुम बिन जैसे ,
                         मेरी सारी ही दुनिया,
 पंछी चुप होने पे आमादा,
                         और फूल कुम्हलाने को ।
बेबस पागल या दीवानी, 
                   जो चाहो पुकारो तुम,
तेरी खातिर हम है राज़ी,
                  यारा कुछ भी कहलाने को ।
तुमने दिया था धोखा जो,
                 खाया मैंने कुछ कहे बिना,
कब आओगे दे दो संदेशा,
                      अब के ज़हर खिलाने को ।  

जो रुला न दे मेरी नामौजूदगी आज तुमको,
                 तो कहना कि हम असल में शायर नहीं यारों ।


मेरा अक्श नहीं है उस महफ़िल में तो क्या,
                   न कहना कि हम वहाँ हाज़िर नहीं यारों।

मेरी नब्ज़ चलती रहेंगी जब तलक भी,
                   ये हरफ़ पेश करेंगी शायरी तब तलक ।

यहाँ बैठी हूँ तनहा तो बेख़ौफ़ न होना,
                   न सोचना कि "शिप्रा" का साहिल नहीं यारों ।

साँसे ....


मेरी गली में न आया करो,
शर्मा के मैं घबराती हूँ |

दिल ये धडकता है जोरो से इतना,
फिजा से न रु- ब-रु हो पाती हूँ |

पट खोलकर मै खिड़की से झाँकू,
दिखते हो तो मै सहम जाती हूँ|

चाहूँ के तुम रोज़ आया करो,
पर इशारों में तुमको मना करती हूँ|

दिल की ये हालत कोई न समझे,
रोती हूँ खुद ही समझाती हूँ|

सर्दी की रातों में बैठी छत पर,
तेरी यादों से मै लिपट जाती हूँ|

मुझसे ये सौतन हवा रोज़ कहती,
उन्हें चूमकर मै चली आती हूँ|

सुनकर हवा की ये गुस्ताखियाँ,
दर्द ओ जलन से तड़प जाती हूँ|

"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....