मै नहीं हूँ...|

मै नहीं हूँ मेरी यादों से लिपट करके रोए हो 
     मेरी तस्वीर के आगे बैठ करके रोए हो |
गैर कहते ही रहे मुझको हर पल तुम तो 
     मै नहीं हूँ मेरे साये को देख करके रोए हो |

तेरी खुशिओं में सजी है महफ़िल फिर तो 
    जशन- ए-रात की तन्हाई में सिमट करके रोए हो |

 मेरे दिल को जला कर हुई तसल्ली तुमको
      अश्क आँखों में समेटे जी भरके रोए हो |

मै थी जिंदा थी तेरी पर तू नहीं मेरा 
मेरी तस्वीर को सीने से लगा करके रोए हो |

मेरे दिल में खुदे थे नक्श तेरे 
    अपनी नफरत को बहुत देर बता करके रोए हो |
जब तलक थे हम हजारों गिले थे तुम्हे 
    अब नही हूँ इश्क बलिस्तों से नाप करके रोए हो |
"निमिशा" लिखती ही रही खुद की ग़ज़ल तुम पर 
         नहीं है वो ये अफसाने दुहरा करके रोए हो |

मुआसात...|

बंद करके आँखों से जो देखा  तो  एक ख्वाब था |
खोल कर जो रुख किया तो सामने शराब था |
मय के खुशबू फर्श से दिल के दीवारों तक थी
हाय ! ये मदिरा नही इश्क का शबाब था |


शाम थी जो ढली तो निशा आ गई,
तारीकिओं में डूबकर इश्क पाना तेजाब था |


ज़िक्र करते है दीवाने राहगीर का यहाँ ,
जो लुट गया आकर शहर में कहीं का नबाब था |

आबे - हैवां की बरसात थी इश्किया रात में,
ईख्राज़त ख्याल में दिल रमां जनाब था |

शब्बे - वस्ल को महबूब से मुआसात कुछ यूँ हुई,
इख्तिलात गैर से दीवाना बना कबाब था|  

मुख़्तसर ही सही इबादत थी उसकी मोहब्बत,
खामोश था हर बात पर पैमाना ही हर जबाब था|




"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....