बचपन की याद....


है सावन की बरसात याद
है बचपन की हर बात याद 
जब काले बादल होते थे 
घनघोर घटा भी बरसी थी 
उस बारिश में हम भीगे थे
उन बूंदों को भी पकडे थे
फिर कागज़ की नाव बनाकर 
बारिश में दूर बहाते थे
उस नाव के पीछे-पीछे
कुछ दूर निकल भी जाते थे
जब कीचड़ में थे पैर पड़े 
गिरते-थमते गिर जाते थे
है  सावन की बरसात याद
है बचपन की  हर बात याद

तब के दिन थे कितने अच्छे 
 सारे अपने थे कितने सच्चे 
 अब तो दुनिया भी झूटी है
  हर एक को फरेब ने लूटी है
  जब बड़े हुए तो पता चला 
  थे दुनिया से अनजान भला 
   बचपन में न चिंता थी
   अपनी न कोई निंदा थी 
  वो रात सुहानी होती थी 
  माँ की लोरी सुनती थी
  फिर नींद की रानी  आती थी 
 सपनो का महल सजाती थी 
  न ऐसी रात कभी आई 
  न नींद की रानी फिर आई
 वो  सपने अपने टूट गए   
वो सच्चे सारे छूट गए 
 बारिश वो सहसा थम गयी
बस बचा  रहा तो वही डगर 
बस बचा  रहा तो वही शहर 
वो ख़ुशी कही अब रही नही 
बस बची रही तो याद वही 
बस बची रही तो याद वही....

है बारिश  की वो बात याद
है बचपन की हर बात याद...

0 comments:

Post a Comment

"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....