अच्छा है...


यूँ समंदर में अकेले डूब जाना अच्छा है
यूँ आसमा में दूर तन्हा उड़ जाना अच्छा है
कोई छोड़ दे रस्ते में साथ अपना तो
ज़िन्दगी ये तन्हा  और तन्हा जी जाना अच्छा है...|


यूँ  शिशिर की रात  में ठिठुर जाना अच्छा है
यूँ पवन के झोकों में बह जाना अच्छा है
कोई ग़म दे दस्तक अगर दिल पे बार- बार 
तो ऐसी याद से दूर और दूर हो जाना अच्छा है

उनके ख़्वाबों में खुद से अन्जान हो जाना अच्छा है,
अपनी ही धडकनें सुन हैरान हो जाना अच्छा है,
  यकलख्त मिल जाए यहाँ गर भीड़ में सनम
   भीड़ में गुमनाम और गुमनाम हो जाना अच्छा है   
  
तारीकियों  की गोद में सो जाना अच्छा है,
   बगैर उनके इश्क के साँसें थम जाना अच्छा है,
   ग़लतफ़हमी की आग में कभी जलने से पहले,
        "शिप्रा" का अपनी ही लहरों में फ़ना और फ़ना हो जाना अच्छा है|
 

अफ़सोस...

किसी गैर को अपना कह रहे थे हम 
 उसी गैर की खातिर जी रहे थे हम
आज एक झटके में टूटी है नींद अपनी 
कि अब तो लगती ही नही आँखें यारों...|


अब न रहा किसी पे ऐतबार अपना
न करेंगे यकीं न प्यार इतना 
 और दर्द  सहने की हिम्मत नहीं अपनी
कि खुदा से भी न रहा कोई गिला यारों...|

कभी एक प्यारा सा घरोंदा था बनाया 
आज वो एक पल में  यूँ ही ढह गया 
किसी से इतनी दिल्लगी हो गई 
कि दिल के टुकड़ों पे यकीं न रहा यारों...|

न कहेंगे किसी को अब अपना
न बुन सकेंगे कोई और सपना 
जो हो गया वो थी अपनी किस्मत 
अफ़सोस...
हम  बदल न सके  हाथों की लकीरें यारों ...|



कल और आज ...

चल रहे है आज भी हम यहाँ 
राह भी वही रहगुजर है वही
 बस किस्मत ही बदल गयी चलते हुए 
इसमें नहीं दोष रहा इन क़दमों का |



हम चले थे आज भी उसी साहिल से 
नही है तो बस साथ  लहरों  का
ये  तूफाँ  ही बहा ले गया दूर उसको   
 इसमें  नही दोष रहा इन  बूंदों  का |


मंजिलें थी तो आज भी  वहीँ
और टिका साहिल भी  वहीं था 
कुछ साथ न था तो वो गुजरा कल 
इसमें नहीं दोष  रहा इन  लहरों  का |



यहाँ के नज़ारे आज भी उतने हसीं हैं 
की हर दिल यहाँ फिर से  जवाँ हो जाते हैं
ओझल हो गई तो बस अपनी खिलखिलाहट 
 इसमें नहीं दोष  रहा इन  नज़रों का | 

  
 

बचपन की याद....


है सावन की बरसात याद
है बचपन की हर बात याद 
जब काले बादल होते थे 
घनघोर घटा भी बरसी थी 
उस बारिश में हम भीगे थे
उन बूंदों को भी पकडे थे
फिर कागज़ की नाव बनाकर 
बारिश में दूर बहाते थे
उस नाव के पीछे-पीछे
कुछ दूर निकल भी जाते थे
जब कीचड़ में थे पैर पड़े 
गिरते-थमते गिर जाते थे
है  सावन की बरसात याद
है बचपन की  हर बात याद

तब के दिन थे कितने अच्छे 
 सारे अपने थे कितने सच्चे 
 अब तो दुनिया भी झूटी है
  हर एक को फरेब ने लूटी है
  जब बड़े हुए तो पता चला 
  थे दुनिया से अनजान भला 
   बचपन में न चिंता थी
   अपनी न कोई निंदा थी 
  वो रात सुहानी होती थी 
  माँ की लोरी सुनती थी
  फिर नींद की रानी  आती थी 
 सपनो का महल सजाती थी 
  न ऐसी रात कभी आई 
  न नींद की रानी फिर आई
 वो  सपने अपने टूट गए   
वो सच्चे सारे छूट गए 
 बारिश वो सहसा थम गयी
बस बचा  रहा तो वही डगर 
बस बचा  रहा तो वही शहर 
वो ख़ुशी कही अब रही नही 
बस बची रही तो याद वही 
बस बची रही तो याद वही....

है बारिश  की वो बात याद
है बचपन की हर बात याद...

"निमिश"

"निमिश" अर्थात पल का बहुत छोटा हिस्सा जितना कि लगता है एक बार पलकों को झपकने में | हर निमिश कई ख़याल आते हैं, हर निमिश ये पलकें कई ख़्वाब बुनती हैं | बस उन्ही ख़्वाबों को लफ्जों में बयान करने की कोशिश है | उम्मीद है कि आप ज़िन्दगी का निमिश भर वक़्त यहाँ भी देंगे | धन्यवाद....